Monday, March 23, 2009
इण्डोनेशिया और रामायण
लगभग छः हजार छोटे-बड़े द्वीपों का देश हैं-इण्डोनेशिया । आबादी 12 करोड़ है और क्षेत्रफल 57545 वर्ग मील है । छोटे द्वीपों में से अधिकतर ऐसे हैं, जिनमें साधारण सी नाव के सहारे आसानी से आते-जाते हैं ।
इस द्वीप समूह की पुरातत्व उपलब्धियों और अर्वचीन परम्पराओं को देखने से स्पष्ट है कि वहाँ भारतीय संस्कृति की गहरी छाप है । वहाँ के इतिहास पर दृष्टि डालने से ही यह तथ्य सामने आता है कि किसी जमाने में यह देश भारतीय उपनिवेश रहा है । वहाँ भारतीय पहुँचे हैं, उन्होंने अपना वंश विस्तार किया है और इस भूमि को खोजा, बसाया और विकसित किया है । पीछे भारत से सम्बंध छूट जाने के कारण वहाँ पहुँचे अरबों के प्रभाव और दबाव में आकर वहाँ के निवासियों ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया । फिर भी संस्कृति में भारतीयता का गहरा पुट बना ही रहा, जो अब तक विद्यमान है । ईसा से लगभग 3 वर्ष पूर्व पाटलिपुत्र का कोई राजकुमार वहाँ पहुँचा और इन द्वीप समूह में से कितने ही द्वीपों को उसने नये सिरे और नये ढंग से बसाया था । तब से भारतीयों का उस क्षेत्र में आना-जाना बना ही रहा । पीछे भगवान बुद्ध के शिष्यों ने वहाँ पहुँचकर बौद्ध धर्म का प्रचार किया, किन्तु इससे पहिले शताब्दियों तक हिन्दू धर्म का ही प्रसार-विस्तार होता रहा और उस द्वीप समूह के प्रायः सभी निवासी हिन्दू धर्मावलम्बी बने रहे ।
इण्डोनेशिया के अनेक नगरों के नाम अभी भी भारतीय नगरों के समान है जैसे अयोध्या, हस्तिनापुर, तक्षशिला, गांधार, विष्णुलोक, लवपुरी, नगर प्रथम आदि ।
इण्डोनेशिया में भारतीय संस्कृति की स्थापना और उसके विकास-विस्तार का महत्त्वपूर्ण विवरण श्री केम्पर के ''अर्ली इण्डोनेशिया आर्टश् डॉ. कुमार स्वामी के 'हिस्ट्री ऑफ एण्डिया एण्ड एण्डोनेशिया यूनिटी'' स्टुटैरहिम के 'रामा लीजेण्डेन एण्ड रामा रिलफिस इन इण्डोनेशियेन' ग्रंथों में प्रामाणिक सामग्री सहित प्रस्तुत किया गया है । इन्हें पढ़ने पर यह स्वीकार करने में कोई अड़चन नहीं रह जाती कि इण्डोनेशिया द्वीप समूह में किसी समय भारतीय संस्कृति का ही बोलबाला था ।
इण्डोनेशिया नाम ग्रीक भाषा का है, जो 'इण्डो' और 'नेसी' शब्दों को जोड़ कर बनाया गया । इण्डो का अर्थ है 'भारत' और नेसी का अर्थ है 'द्वीप' । इण्डोनेशिया अर्थात् भारत का द्वीप । यहाँ चिरकाल तक भारतीय सभ्यता की जड़ जिस गहराई तक जमी रही है, उसे देखते हुए यह नामकरण सर्वथा उचित ही कहा जा सकता है । इन द्वीप समूहों का इतिहास पिछले दिनों तक 'ईस्ट इण्डीज' कहा जाता रहा है । ईस्टइण्डीज अर्थात् 'पूर्वी भारत' । जिस प्रकार अब उत्तर भारत और दक्षिण भारत एक होते हुए भी उसकी भौगोलिक जानकारी के लिये उत्तर-दक्षिण का प्रयोग करते हैं, उसी तरह किसी समय विशाल भारत का पूर्वी छोर इण्डोनेशिया तक फैला हुआ था । उसके मध्य में आने वाले देश तो भारत के अंग थे ही ।
इस्लाम ने हिन्दी, चीन और हिन्दोनेशिया पर तूफानी वेग से आक्रमण किया । सन् 14 के लगभग इस क्षेत्र के लोग मुसलमान बनने को बाध्य हो गये । इससे पूर्व उस क्षेत्र में हिन्दू धर्म का ही प्रचलन शताब्दियों से चला आता था । उपासना की दृष्टि से शिव की प्रथम और विष्णु की द्वितीय मान्यता वहाँ पर थी । उपलब्ध मूर्तियों अवशेषों तथा शिलालेखों से यह पूर्णतया बड़े उत्साह के साथ हुई थी । साथ ही विष्णु-मन्दिर भी बनाये गये थे । शिव और विष्णु की सम्मिलित मूर्तियाँ भी मिली हैं ।
यों सारा कम्बोडिया इस्लामी सभ्यता के प्रसार के साथ-साथ मन्दिरों के खण्डहारों से भरता चला गया पर अभी भी जो बचें हैं, उनकों कम महत्त्वपूर्ण और गौरवास्पद नहीं कहा जा सकता ।
इण्डोनेशिया के प्रथम शिक्षामंत्री यासीन ने उस देश का विस्तृत इतिहास ''ताता नगरा मजहित सप्त पर्व'' नाम से लिखा है और उसमें रामायण को उस देश की सांस्कृतिक गरिमा के रूप में स्वीकार किया है ।
महाभारत पर आधारित देवरुचि, अर्जुन-विवाह, काकविन, द्रोपदी स्वयंवर, अभिमन्यु-वध आदि कितने ही कथानक भी यहाँ की नाट्य परम्पराओं में सम्मिलित हैं । 11वीं शताब्दी में महाभारत लिखा गया, जिसका नाम है ''महायुद्ध'' ।
योग्या कार्ता का प्राचीन शिवालय 140 फुट ऊँचा है । इसमें 16 बडे़ और 240 छोटे मन्दिर सम्मिलित हैं, भूचाल से ध्वंश होने पर भी जो कुछ बचा है, वह भी अत्यधिक हृदयग्राही है । रामायण अभिनयों में जोग्या के सुल्तान की पुत्रियाँ सीता और त्रिजिटा का अभिनय करती थीं ।
7 सितम्बर 1971 में इण्डोनेशिया ने विश्व का सर्वप्रथम अन्तर्राष्ट्रीय रामायण महोत्सव आयोजित किया और राष्ट्रसंघ को उसमें सहयोग देने के लिये राजी कर लिया । यह उत्सव 15 दिन चला और उसमें फिजी, सिंगापुर, मलेशिया, थाईलैण्ड, लाओस, कम्बोडिया, वर्मा, लंका, भारत, नेपाल आदि देशों ने अपनी-अपनी प्रतिनिधि मण्डलियाँ भेजकर उत्साह-पूर्वक भाग लिया । रामलीला कितनी शैलियाँ प्रचलित हैं और उनकी अपनी-अपनी कितनी विशेषतायें हैं । इसे देखकर आगन्तुक मन्त्रमुग्ध रह गये । इस विश्व मेले में 300 कलाकारों और 20 हजार दर्शकों ने भाग लिया ।
सन् 1969 में ईरान को 40 कलाकारों की एक 'संस्कृति मण्डली' भेजी गयी और उसने ''रामायण अभिनय'' को नाट्य द्वारा ऐसी सुन्दरतापूर्वक सम्पन्न किया कि ईरानी जनता मन्त्र-मुग्ध रह गयी । इस मण्डली ने वापसी में दिल्ली में भी अपनी रामलीला दिखाई जिसकी जनता ने भूरि-भूरि प्रशंसा की ।
यों भारत में भी रामलीला का प्रचलन है । दशहरा के अवसर पर रावण वध, भारत-मिलाप आदि के दृश्यों सहित छोटे-बड़े समारोह उत्तर भारत में प्रायः हर नगर में होते हैं, पर इण्डोनेशिया में रामलीला क्रमशः अधिकाधिक कलात्मक होती गयी है और उसके साथ जुड़े नृत्य अभिनय इतने ऊँचे कला-स्तर पर जा पहुँचे हैं कि उस क्षेत्र की सुरुचि को सराहे बिना नहीं रहा जा सकता । चर्म पुतलियाँ द्वारा सम्पन्न होने वाले नाटक भारत की कठपुतली कला को बहुत पीछे छोड़ देते हैं । बिहार के सेराइ केला क्षेत्र में छाऊँ नृत्य को देखकर इस क्षेत्र की नृत्य शैली का थोड़ा आभास भर मिल सकता है
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