मंगल भवन अमंगल हारी । द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी॥
मुद मंगलमय संत समाजू । जो जग जंगम तीरथ राजू ॥
हरि अनंत हरि कथा अनंता । कहहि सुनहि बहु बिधि संता ॥
रामहि केवल प्रेम पियारा । जानि लेहु जो जाननि हारा ॥
हरि सेवकहि न ब्याप अबिद्या | प्रभु प्रेरित ब्यापइ तेहि बिद्या ||
भगति हीन गुन सब सुख ऐसे | लवन बिना बहु बिंजन जैसे ||
सब मम प्रिय सब मम उपजाए | सब ते अधिक मनुज मोहि भाए ||
भगतिवन्त अति नीचउ प्रानी | मोहि प्रानप्रिय अस मम बानी ||
तब ते मोहि न ब्यापी माया | जब ते रघुनायक अपनाया ||
बिनु संतोष न काम नसाहीं | काम अछत सुख सपनेहुँ नाहीं ||
श्रद्धा बिना धर्म नहिं होई | बिनु महि गंध कि पावइ कोई ||
गुर बिनु भव निधि तरइ न कोई | जों बिरंचि संकर सम होई ||
कलिजुग केवल हरि गुन गाहा | गावत नर पावहिं भव थाहा ||
कलिजुग जोग न जग्य न ग्याना | एक अधार राम गुन गाना ||
जेहिं ते नीच बड़ाई पावा | सो प्रथमहिं हति ताहि नसावा ||
जे सठ गुर सन इरिषा करहीं | रौरव नरक कोटि जुग परहीं ||
जो इच्छा करिहहु मन माहीं | हरि प्रसाद कछु दुर्लभ नाहीं ||
नहिं दरिद्र सम दुःख जग माहीं |संत मिलन सम सुख जग नाहीं ||
संत सहहिं दुःख पर हित लागी | पर दुख हेतु असंत अभागी ||
भूर्ज तरू सम संत कृपाला | पर हित निति सह बिपति बिसाला ||
खल बिनु स्वारथ पर अपकारी | अहि मूषक इव सुनु उरगारी ||
मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला | तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला ||
संत बिटप सरिता गिरि धरनी | पर हित हेतु सबन्ह कै करनी ||
कोमल चित अति दीनदयाला । कारन बिनु रघुनाथ कॄपाला ॥
अजर अमर गुननिधि सुत होहू । करहुं बहुत रघुनायक छोहूं ॥
प्रभु की कॄपा भयहु सब काजू । जन्म हमार सुफ़ल भा आजू ॥
जय जय गिरिबर राज किशोरी । जय महेश मुख चंद्र चकोरी ॥
उल्टा नामु जपत जग जाना । बालमिकि भए ब्रह्म समाना ॥
उमा कहेहु मैं अनुभव अपना । सत हरि भजनु जगत सब सपना ॥
अब मोहि भा भरोस हनुमंता । बिनु हरि कॄपा मिलहिं नहि संता ॥
धीरज धर्म मित्र अरू नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी ॥
जहां सुमति तहं संपति नाना । जहां कुमति तहं बिपति निदाना ॥
बिनु सतसंग विवेक न होई | राम कृपा बिनु सुलभ न सोई || (बाल कांड)
सीय राममय सब जग जानी | करऊँ प्रनाम जोरि जुग पानी || (बाल कांड)
मंगल भवन अमंगल हारी | उमा सहित जेहि जपत पुरारी || (बाल कांड)
महावीर बिनवउ हनुमाना | राम जासु जस आप बखाना || (बल कांड)
बिनु सतसंग विवेक न होई | राम कृपा बिनु सुलभ न सोई || (बाल कांड)
सीय राममय सब जग जानी | करऊँ प्रनाम जोरि जुग पानी || (बाल कांड)
मंगल भवन अमंगल हारी | उमा सहित जेहि जपत पुरारी || (बाल कांड)
महावीर बिनवउ हनुमाना | राम जासु जस आप बखाना || (बल कांड)
नहिं कलि करम न भगति बिबेकू | राम नाम अवलंबन एकू || (बाल कांड)
समरथ कहुँ नहिं दोष गोसाईं | रवि पावक सुरसरि की नाईं || (बाल कांड)
गुरु के बचन प्रतीति न जेही | सपनेहुँ सुगम न सुख सिधि तेही || (बाल कांड)
जो नहिं करइ राम गुन गाना | जीह सो दादुर जीह समाना || (बाल कांड)
रामकथा सुंदर कर तारी | संसय बिहग उडावनिहारी || (बाल कांड )
हरि अनंत हरि कथा अनंता | कहहिं सुनहिं बहु बिधि सब संता || (बाल काण्ड)
अति प्रचंड रघुपति कै माया | जेहि न मोह अस को जग जाया || (बाल काण्ड)
जेहि बिधि नाथ होइ हित मोरा | करहु सो बेगि दास मैं तोरा || (बाल काण्ड)
बड़े सनेह लघुन्ह पर करहीं | गिरि निज सिरनि सदा तृन धरहीं || (बाल काण्ड)
जाके हृदयँ भगति जस प्रीती | प्रभु तहँ प्रगट सदा तेहि रीति || (बाल काण्ड)
हरि ब्यापक सर्बत्र समाना | प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना ||( बाल काण्ड )
देवि पूजि पद कमल तुम्हारे | सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे || (बाल काण्ड )
जिन्ह के रही भावना जैसी | प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी || (बाल काण्ड )
जेहि के जेहि पर सत्य सनेहू | सो तेहि मिलई न कछु संदेहू || (बाल काण्ड)
देवि पूजि पद कमल तुम्हारे | सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे || (बाल काण्ड )
टेढ़ जानि सब बंदइ काहू | बक्र चंद्रमहि ग्रसइ न राहू || (बाल काण्ड)
ऊँच निवासु नीचि करतूती | देखि न सकहिं पराइ बिभूती || (अयोध्या काण्ड)
रघुकुल रीति सदा चलि आई | प्रान जाहुँ बरु बचन न जाई || (अयोध्या कांड)
जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी | सो नृपु अवसि नरक अधिकारी || (अयोध्या कांड)
जिन्हं कें कपट दम्भ नहिं माया | तिन्हं के हृदय बसहु रघुराया || (अयोध्या काण्ड)
राम भगत प्रिय लागहिं जेही | तेहि उर बसहु सहित बैदेही ||(अयोध्या कांड)
का बरषा जब कृषी सुखानें | समय चुकें पुनि का पछताने ||
दीन दयाल बिरिदु संभारी । हरहु नाथ मम संकट भारी ॥
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