Tuesday, March 31, 2009

SELECTIVE CHOPAIYAN OF TULSI RAMAYAN

बचपन में, हम श्री रामचरित मानस का खूब सस्वर पाठ करते थे। कुछ चौपाइयां रह रह कर जुबान में आ जाती हैं। कुछ प्रचलित चौपाइयौं को यहां लिखने का प्रयास करता हूं। उम्मीद है आप सज्जन भी इसमें भाग अवश्य भागीदारी करेंगे।


मंगल भवन अमंगल हारी । द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी॥

मुद मंगलमय संत समाजू । जो जग जंगम तीरथ राजू ॥

हरि अनंत हरि कथा अनंता । कहहि सुनहि बहु बिधि संता ॥

रामहि केवल प्रेम पियारा । जानि लेहु जो जाननि हारा ॥

हरि सेवकहि न ब्याप अबिद्या | प्रभु प्रेरित ब्यापइ तेहि बिद्या ||

भगति हीन गुन सब सुख ऐसे | लवन बिना बहु बिंजन जैसे ||

सब मम प्रिय सब मम उपजाए | सब ते अधिक मनुज मोहि भाए ||

भगतिवन्त अति नीचउ प्रानी | मोहि प्रानप्रिय अस मम बानी ||

तब ते मोहि न ब्यापी माया | जब ते रघुनायक अपनाया ||

बिनु संतोष न काम नसाहीं | काम अछत सुख सपनेहुँ नाहीं ||

श्रद्धा बिना धर्म नहिं होई | बिनु महि गंध कि पावइ कोई ||

गुर बिनु भव निधि तरइ न कोई | जों बिरंचि संकर सम होई ||

कलिजुग केवल हरि गुन गाहा | गावत नर पावहिं भव थाहा ||

कलिजुग जोग न जग्य न ग्याना | एक अधार राम गुन गाना ||

जेहिं ते नीच बड़ाई पावा | सो प्रथमहिं हति ताहि नसावा ||

जे सठ गुर सन इरिषा करहीं | रौरव नरक कोटि जुग परहीं ||

जो इच्छा करिहहु मन माहीं | हरि प्रसाद कछु दुर्लभ नाहीं ||

नहिं दरिद्र सम दुःख जग माहीं |संत मिलन सम सुख जग नाहीं ||

संत सहहिं दुःख पर हित लागी | पर दुख हेतु असंत अभागी ||

भूर्ज तरू सम संत कृपाला | पर हित निति सह बिपति बिसाला ||

खल बिनु स्वारथ पर अपकारी | अहि मूषक इव सुनु उरगारी ||

मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला | तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला ||

संत बिटप सरिता गिरि धरनी | पर हित हेतु सबन्ह कै करनी ||

कोमल चित अति दीनदयाला । कारन बिनु रघुनाथ कॄपाला ॥

अजर अमर गुननिधि सुत होहू । करहुं बहुत रघुनायक छोहूं ॥

प्रभु की कॄपा भयहु सब काजू । जन्म हमार सुफ़ल भा आजू ॥

जय जय गिरिबर राज किशोरी । जय महेश मुख चंद्र चकोरी ॥

उल्टा नामु जपत जग जाना । बालमिकि भए ब्रह्म समाना ॥

उमा कहेहु मैं अनुभव अपना । सत हरि भजनु जगत सब सपना ॥

अब मोहि भा भरोस हनुमंता । बिनु हरि कॄपा मिलहिं नहि संता ॥

धीरज धर्म मित्र अरू नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी ॥

जहां सुमति तहं संपति नाना । जहां कुमति तहं बिपति निदाना ॥

बिनु सतसंग विवेक न होई | राम कृपा बिनु सुलभ न सोई || (बाल कांड)

सीय राममय सब जग जानी | करऊँ प्रनाम जोरि जुग पानी |
| (बाल कांड)

मंगल भवन अमंगल हारी | उमा सहित जेहि जपत पुरारी || (बाल कांड)

महावीर बिनवउ हनुमाना | राम जासु जस आप बखाना || (बल कांड)

बिनु सतसंग विवेक न होई | राम कृपा बिनु सुलभ न सोई || (बाल कांड)

सीय राममय सब जग जानी | करऊँ प्रनाम जोरि जुग पानी || (बाल कांड)

मंगल भवन अमंगल हारी | उमा सहित जेहि जपत पुरारी || (बाल कांड)

महावीर बिनवउ हनुमाना | राम जासु जस आप बखाना || (बल कांड)

नहिं कलि करम न भगति बिबेकू | राम नाम अवलंबन एकू || (बाल कांड)

समरथ कहुँ नहिं दोष गोसाईं | रवि पावक सुरसरि की नाईं || (बाल कांड)

गुरु के बचन प्रतीति न जेही | सपनेहुँ सुगम न सुख सिधि तेही || (बाल कांड)

जो नहिं करइ राम गुन गाना | जीह सो दादुर जीह समाना || (बाल कांड)

रामकथा सुंदर कर तारी | संसय बिहग उडावनिहारी || (बाल कांड )

हरि अनंत हरि कथा अनंता | कहहिं सुनहिं बहु बिधि सब संता || (बाल काण्ड)

अति प्रचंड रघुपति कै माया | जेहि न मोह अस को जग जाया || (बाल काण्ड)

जेहि बिधि नाथ होइ हित मोरा | करहु सो बेगि दास मैं तोरा || (बाल काण्ड)

बड़े सनेह लघुन्ह पर करहीं | गिरि निज सिरनि सदा तृन धरहीं || (बाल काण्ड)

जाके हृदयँ भगति जस प्रीती | प्रभु तहँ प्रगट सदा तेहि रीति || (बाल काण्ड)

हरि ब्यापक सर्बत्र समाना | प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना ||( बाल काण्ड )

देवि पूजि पद कमल तुम्हारे | सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे || (बाल काण्ड )

जिन्ह के रही भावना जैसी | प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी || (बाल काण्ड )

जेहि के जेहि पर सत्य सनेहू | सो तेहि मिलई न कछु संदेहू || (बाल काण्ड)

देवि पूजि पद कमल तुम्हारे | सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे || (बाल काण्ड )

टेढ़ जानि सब बंदइ काहू | बक्र चंद्रमहि ग्रसइ न राहू || (बाल काण्ड)

ऊँच निवासु नीचि करतूती | देखि न सकहिं पराइ बिभूती || (अयोध्या काण्ड)

रघुकुल रीति सदा चलि आई | प्रान जाहुँ बरु बचन न जाई || (अयोध्या कांड)

जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी | सो नृपु अवसि नरक अधिकारी || (अयोध्या कांड)

जिन्हं कें कपट दम्भ नहिं माया | तिन्हं के हृदय बसहु रघुराया || (अयोध्या काण्ड)

राम भगत प्रिय लागहिं जेही | तेहि उर बसहु सहित बैदेही ||(अयोध्या कांड)

का बरषा जब कृषी सुखानें | समय चुकें पुनि का पछताने ||
दीन दयाल बिरिदु संभारी । हरहु नाथ मम संकट भारी ॥

No comments:

Post a Comment